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दिल्ली में हर रविवार को कुछ युवा लेखक एक पार्क में जुटते रहे हैं। पिछले दिनों राजधानी की सघन सृजनात्मक हलचलों में से आप इसे भी गिन सकते हैं। वे युवा जो रचनात्मक स्तर पर एक अच्छे समाज की कल्पना के साथ सक्रिय हों, उनका एक जगह लगातार जुटना एक ऐतिहासिक परिघटना की तरह ही है। ज़ाहिर है, जहां समूह होगा और लोकतंत्र उस समूह की बुनियादी शर्त होगी- मतभेद भी होंगे। ऐसे ही मतभेदों में से एक रहा- रचनात्मक सक्रियता की व्याख्याओं को लेकर। कुछ मानते रहे कि देश भर में होने वाले दमन और उसके खिलाफ खड़े जनांदोलनों के साथ प्रतीकात्मक सहमति के तौर पर एक लेखक को कलम के अलावा भी अपनी सक्रियता दिखानी होगी, तो कुछ को प्रदर्शन से जुड़ी हुई ऐसी सक्रियता गै़र रचनात्मक ज्यादा लगती रही। बात समूह टूटने तक पहुंच गयी है। लेकिन जो बहस है, वो सिर्फ इस समूह के लिए ज़रूरी नहीं है- रचनात्मकता की समझ को लेकर एक व्यापक संदर्भ में ज़रूरी बहस है। इसलिए हम दो नितांत व्यक्तिगत चिट्ठियों को मोहल्ले में बांच रहे हैं- ताकि विमर्श का ये संदर्भ ज्यादा से ज्यादा लोगों से जुड़े।...more
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गांधी इस मुल्क के पहले एनजीओ थे अरुंधति रॉय से शोमा चौधुरी की बातचीत हमारे कई दोस्त कहते हैं कि वर्चुअल स्पेस की अपनी सीमाएं हैं, और जब भी हम तीखे अंदाज़ की तरफदारी और अभिव्यक्ति वाली ज़बान का इस्तेमाल इस स्पेस में करते हैं, तो हमें आगे-पीछे सोचना चाहिए। हम इस सलाह को नहीं मानते। हम मानते हैं कि वर्चुअल स्पेस एक ऐसा हथियार है, जिसे सरकारें धीरे-धीरे हर गांव हर टोले को मुहैय्या कराएंगी। भले ही सबको रोटी और रोज़गार मुहैय्या कराना उसके बस की बात नहीं होगी। एक ऐसे समाज में, जहां आदमी से ज्यादा वज़नदार मशीनें हैं- उस समाज में हमारे आपके सोचने का यही मतलब है कि इस समाज के नियंताओं के खिलाफ हम नाराज़ हों, निराश हों।...more
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पहली बार मोहल्ले में एक ऐसे मसले पर बात की जा रही है, जो उन मुद्दों से हटकर हैं, जिनके बारे में स्वानामधन्य से अनामधन्य तक कहते हैं कि वे पुराने पड़ चुके हैं और लोगों की भावनाओं को भड़काते हैं। कानून कहता है कि पुलिस की मदद लें, पुलिस से डरें नहीं। लेकिन उनकी शख्सीयतें हमें डराती हैं, उनके कारनामे उनसे नफरत करने के लिए उकसाते हैं। सुप्रीम कोर्ट का फरमान आया कि राज्य अपनी-अपनी पुलिस की वर्दी साफ करे, लेकिन राज्य सरकारों ने उसी तरह ये फरमान अनसुना कर दिया, जैसे गुजरात के अल्पसंख्यकों की इंसाफ की पुकार पर नरेंद्र मोदी उबासी लेते हैं। वरिष्ठ पत्रकार सत्येंद्र रंजन इस मुद्दे के साथ आपके सामने हैं।...more
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ट्रॉल्लिंग: हिंदी-चिट्ठाकारी में नया शगूफ़ा! ‘ट्रॉल्ल‘ इन्टरनेट पर उस व्यक्ति को कहा जाता है जो जानबूझ कर संवेदनशील मुद्दों पर आपत्तीजनक, अपमानजनक और भडकाऊ बातें लिखता है. कई बार तो कानूनी कार्यवाही की नौबत आ जाती है. ट्राल्स के बारे में ये जानीमानी बात है की इनके पास खाली समय की कोई कमी नहीं होती, विघ्नसंतोष में सुख पाने की मनोवृत्ती होती है, आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की कमी होती है और अपने निजी जीवन में कोई सम्मानजनक स्थान नही होता. इसका उद्देश्य कुछ भी हो सकता है - वैमनस्य फ़ैलाना, लोगों का समय नष्ट करना, उन्हें खिन्न करना. अरुचिपूर्ण, अनुपयोगी और अनुत्पादक लेखन! एक शब्द में ’टेस्ट-लैस’!ट्राल्लिंग करने वाला लोगों के ध्यानाकर्षण का भूखा होता है. तंग आ कर चालू अंग्रेजी वाले इन्हें “अट्टेंशन होर” [वेश्यावत ध्यानाकर्षणा व्यहार करने वाला] कहने लगे हैं - जो एक किस्म का अपशब्द होते हुए भी फ़ोरम्स पर ‘ट्रॉल्स’ से अधिक प्रचलित शब्द हो गया. ट्रॉल्स का हश्र तय है. जैसे सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिये उछल-कूद या तोड-फ़ोड करता बदतमीज़ बच्चा चांटा खाने से लेकर कमरे के बाहर कर दिये जाने तक किसी भी किस्म की सज़ा पाता है वैसे ही ऐतिहासिक रूप से ट्रॉल्स को डिसकशन फ़ोरम्स या ईमेल ग्रुप्स पर से लानत-मलामत कर के बैन किया जाता रहा है. जो बगिया लगाना जानते हैं उन्हें खरपतवार से निपटना आता है. मॉडरेटर्स की नियमावली पूर्व-निर्धारित होती है और समूह के भले के लिये अनुशासन की कार्यवाही करना पडती है.चेताने पर ट्रॉल्स अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देते हैं और समूह की नींव रखने वालों को फ़ासीवाद, तानाशाही, तालिबानियत की तोहमतें लगाते हैं. घडियालीआंसू और बकवाद शुरु करते हैं अत: कई बार उन्हें बैन करने की कार्यवाही एक झटके में की जाती है - बिना किसी पूर्व सूचना के- जनता इतनी त्रस्त हो चुकती है राहत की सांस लेती है - “गुड रिड्डेंस”! शहीदी सुख लेने का कोई मौका नहीं मिलता. कई बार तो ट्रॉल्स के घर,दफ़्तर आदी के पते से से आने वाले किसी नई सदस्यता के निवेदन तक को खारिज कर दिया जाता है.
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Mohalla उत्तर प्रदेश के एक मामूली से मदरसे के मुक़दमे ने राख में दबी उस चिंगारी को फिर से हवा दे दी... और एक बड़ी बहस को फिर से ताज़ा कर दिया। Mohalla I -----------------------------------------
अमिताभ बच्चन बनाम दिलीप कुमार उर्फ यूसुफ ख़ान
*आलमपनाह पर भारी शहंशाह मोहल्ले में ये दस्तक /सिर्फ नारों से गरीबी नहीं जाने वालीआ गयी है तो रहेगी नहीं जाने वाली / उम्र भर अब ये सफेदी नहीं जाने वालीमैं मरूंगा तो यहीं दफ्न किया जाऊंगा / मेरी मिट्टी भी कराची नहीं जाने वालीखेतियां खून पसीना भी तलब करती हैं / सिर्फ नारों से गरीबी नहीं जाने वाली मुनव्वर राणा की चंद लाइनें ....... अविनाश
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इरफान भाई के अनिल इस्लाम मोटर्स को हमने अपने तरीक़े से समझा। शायद हमें जहां से खड़े होकर सोचने-समझने की आदत पड़ गयी है, हम वहीं से सोचते-समझते हैं। इरफान भाई ने हमारी समझ कुछ इस अंदाज़ में साफ की है।.. more
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I was sitting in the room and suddenly felt the pain..... |
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SORRY...for the last few weeks I'm not well ,I have got mails but will write after sometime- what is my mother’s past and why shouldn’t I write off it with my present…if you have something in your mind, send me, I will continue with blog as soon as possible...Roxana
READ the first part of Roxana- blog... Some time that month, I was sitting in the room and suddenly felt the pain. It was not usual. My heart was pounding like anything .He, Mom and I…what the relationship was. That day I wrote the first letter. Chekhov was in my mind. Somewhere he wrote-‘ In my opinion well-bred people are not taken in by false values such as introductions to celebs, handshakes from the famous drunken lawyer, the enthusiasm of a chance acquaintance in the drawing-room, or a tavern reputation. They don’t boast of cheap successes or claim that they are admitted where others are not. True talent is always to be found in dark corners.’ He was that type of man. Never complaining, no hip-hop, no vulgar show of assets. I wrote him all the Chekhov words. But, I was not her type of. My mother never liked the equation between un-equals. She was always in love with parties, friends and joy. “This boy who never touched even your finger tips, was just for his dreams, may not be allowed to present a ring” – MY MOTHER CRIED like anything. ..And there he was. He was listening it out on the open mobile, which was taken me after a favorite tone rang…He was cool as always .He asked me – “Anything wrong ? Don’t worry; your mother is always right. She knows the future of our relationship.” …… And today. I’m alone. His words are right. My future is being decided outside in a lawn. Two companies are signing a business contract .Two families are deciding my future. I’m thinking of him but my mother is in my heart. She has a bitter past, I have to live with him, with her side. She is not right about him but I will have to be with her. WHY>>>>? SORRY...for the last few weeks I'm not well ,I have got mails but will write after sometime- what is my mother’s past and why shouldn’t I write off it with my present…if you have something in your mind, send me, I will continue with blog as soon as possible...Roxana |
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